Saturday, September 8, 2018

तिलक,तराज़ू और तलवार,जो अपनी पे उतर आये ।

किसी का हक़ किसी और को क्यूँ दिलाने पे तुली है।
सियासत ही  मुल्क़ में आरजकता फैलाने पे तुली है।।

देश का संविधान तो सबको एकसार अधिकार देता है।
क्यूँ सरकार देके आरक्षण संविधान मिटाने पे तुली है।।

हरफ़ पिछडा,दलित,निम्न पैदाइश राजनीति के हैं।
थाम के इनका दामन सत्ता  वतन जलाने पे तुली है।।

ज़रा सोचो कुकुरमुत्ते कभी क्या बरगद बन सकते हैं।
मगर हुकूमत है ज़बरदस्ती फसल उगाने पे तुली है।।

नस्ल सब दानिशमंदों की ख़त्म करने की साज़िश है।
इसी साज़िश के तहत सारे सवर्ण मिटाने पे तुली है।।

याद इतना रहे जिस दिन भी समुंदर आपा खो देगा।
ज़माना रोयेगा कि लहर क्यूँ दुनिया डूबाने पे तुली है।।

तिलक,तराज़ू और तलवार,जो अपनी पे उतर आये ।
सियासत फिर न कहना आग क्यूँ जलाने पे तुली है।।

मैं अपनी नस्ल को घुट घुट के मरते देख नही सकता।
मगर ये सरकार खुदकुशी के लिये उकसाने पे तुली है।।

जो भी काबिल है उसे उड़ने दो खुले आसमानों में।
निज़ामत ज़बरन कबूतरों को बाज़ बनाने पे तुली है।।

तुझे गाली ज़रूर देगी हुकूमत पर 'दीपक' न घबराना।
टीस एक शायर से भी आज बगाबत कराने पे तुली है।।

@ दीपक शर्मा

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