Friday, August 28, 2009

खुदा ज़र दे , रसूख और कुव्वत दे .....

ख़ुदा ज़र दे ,रसूख और कुब्बत दे

गरूर हिम्मत का तोड़ने की हिम्मत दे

बैचैन ज़मीं को सुकून की किस्मत दे

हर सूँ उजला दिखे ऐसी नूर नीयत दे ।


तेरे दिल मे ग़रीबो के लिए दर्द भर दे

सुर्ख रंगत तेरी गैर कराह ज़र्द कर दे

बेदार ,यतीम ,लावारिस का बने सरमाया

अल्लाह इस शज़र को जल्दी बरगद कर दे ।


तेरे हाथो को नवाजे वो हुनर से हज़ार

नाराज हो भी तो निकले बस जुबां से प्यार

तस्वीर खुद ही बोल उठ्ठे “सुभान अल्लाह”

बेहिसाब रंगों मे तेरे आये शहकार निखार ।

मैं दिल की वादियों से तुझको सदा देता हूँ

गूँज जिसकी सुने जहाँ वो दुआ देता हूँ

मुबारक तुझको ये दिन हो मेरे अहवाब अजीज़

"दीपक" मन्दिर में तेरे नाम का जला देता हूँ ।

सर्वाधिकार सुरक्षित @ कवि दीपक शर्मा

http://www.kavideepaksharma.com/

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Wednesday, August 26, 2009

ये ताल्लुकात , ये रिश्ते , ये दोस्ती , ये साथ ....

ये ताल्लुकात, ये रिश्ते , ये दोस्ती , ये साथ,

ये हमदर्दियाँ, ये वादे, काँधे पे ऐतबार का हाथ ,

ये हर बात पे कसमें, ये लम्बी - लम्बी करीबी बातें ,

ये जज्बात, ये तोहफे और बेशकीमती सौगातें ,

ये खून का वास्ता , ये रिश्ते - नातों का हवाला

ये हमसफ़र , ये हमकदम , ये हमनवां , ये हमप्याला ,

यकीनन तब तलक हैं जब तक तेरे पास दाने हैं

जिस दिन बिन - दाना हो गया , उस रोज़ बेगाने है ।




आज जो दम तेरा हमसाया होने का भरते हैं

तेरे इशारों से जीते हैं , तेरे कहने से मरते हैं

तेरी हर बात पर सिर हिलते हैं जिनके हामी में,

अच्छाईयाँ ही देखती हैं हस्तियां जो तेरी खामी में

सबकी पैमाईशें भी हैं वही जो तेरे पैमाने हैं

जहाँ पर पाँव तेरे हैं वहां सबके सिरहाने हैं

यकीनन तब तलक हैं जब तक तेरे पास दाने हैं

जिस दिन बिन - दाना हो गया , उस रोज़ बेगाने हैं ।



( उपरोक्त पंक्तियाँ काव्य संकलन " मंज़र " से ली गई है )



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