Saturday, October 16, 2010

विजयादशमी


From Untitled Album


आप सबको विजयादशमी पर्व की मंगल कामनाएँ .सत्य की जय हो,धर्म की जय हो,ईश्वर की जय हो.हमारे ह्रदय में मानवता का वास हो ,देश ,संस्कृति ,बुज़ुर्ग,के प्रति नेह रहे . परोपकार की भावना उम्र तक साथ रहे .हम सदाचारी बनें.

"ज़ुल्म कितना ही सबल हो,तम हो कितना ही प्रबल
झूट,फरेब,मक्कारियों के,चाहे संघठित कितने ही दल,
जाल कितना ही महीन चाहे,मिलकर बुने कुसंगतियाँ,
और चाल कैसी भी चले, हो एकजुट दुश्प्रव्रतियाँ
पर सत्य की जब एक किरण,सिर अपना कहीं उठाती है
चीर कर सीना तिमिर का,“दीपक” दीप्ति मुस्कुराती हैं

दीप्ति मुस्कुराती हैं

दीप्ति मुस्कुराती हैं

दीप्ति मुस्कुराती हैं

@कवि दीपक शर्मा

Sunday, August 1, 2010

फ्रेंडशिप डे पर कवि दीपक शर्मा कि और से आप सब के लिए ...

आप का साथ मुझे हौसला देता है
सादिक़ दोस्त सादिक़ सिला देता है

प्यार तेरा खुदाया करम है मुझ पे
ख्याल तेरा मुझे अक़्सर रुला देता है.

(सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा )

Wednesday, May 26, 2010

सेमल जैसी काया

सेमल जैसी काया लेकर देखो चंदा आया रे
रौशन जगमग मेरे अंगना देखो उतरा साया रे
पूनो वाली ,रात अमावास जैसी लगती दुनिया को
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे ।

दूध कटोरे माफिक आंखिया,बिन बोले कह देती बतिया
रात बने दिन जगते जगते ,दिन भये सोते सोते रतिया
मुंह से दूध की लार गिरे तो मां ने हाथ फैलाया रे
चांदनी मेरे द्वारे आई ,छाया जग मे उजियारा रे ।

सर्वाधिकार सुरक्षित @ दीपक शर्मा

कवि दीपक शर्मा

Sunday, March 7, 2010

नारी दिवस

From Shayar Deepak Sharma
नारी प्रकृति की मानव समाज को ईश्वर द्वारा बख्शी गई सबसे श्रेष्ठ एवम अतुलनीय मानस कृति है.नारी सम्पूर्ण कायनात है .अपने आप में एक सम्पूर्ण संसार है .नारी ने इस संसार को जिसके हम अंश है जन्मा है.यह सब कुछ जो भी यहाँ मानवीय या दैवीय अथवा किसी भी रूप में बिद्यमान है,इसका परोक्ष रूप से नारी का ही दिया हुआ आशीर्वाद है .हम इस ऋण से कभी उऋण नहीं हो सकते और न ही होना चाहते हैं . ये हमारा ही दुर्भाग्य है कि हम जिस कोख से पैदा होते हैं उसी को दुत्कारते हैं .उसी को उसका हक नहीं देते .हम नारी से उम्मीद तो करते है पर उसकी उम्मीद नहीं बनते .हम "महिला दिवस "पर इस शक्ति स्वरूपा को प्रणाम करते हैं और नमन करते हैं .....

कवि दीपक शर्मा
सर्वाधिकार @कवि दीपक शर्मा

Tuesday, January 26, 2010

जिनके दामन में दौलत नहीं ग़म होते हैं ...............

जिनके दामन मे दौलत नहीं ग़म होते हैं
उन मुसाफ़िरों के हमसफ़र कम होते हैं ।

जो उसूलों की बात करता है ज़माने मे
उसके लम्हे -हयात जल्दी खत्म होते हैं ।

बेवफ़ाओं की राह में फूलों की बारिश
वफ़ादारों पे पत्थरों के करम होते हैं ।

अब शहर देखकर ही हवाएं चला करती हैं
इंसान की तरह होशियार मौसम होते हैं ।

उनसे हर वक़्त ख़ुदा भी ख़फ़ा रहता है
जिनपे पहले से ही लाख़ सितम होते हैं ।

घर में मौत और जश्न का माहौल या रब
जबकि ग़ैरों के दर पे मातम होते हैं ।


और ज़्यादा की आरज़ू में , खो गई आबरू
ख़ुद पे शर्मसार "दीपक" लोग कम होते हैं।


All right reserved @Deepak Sharma
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