Saturday, September 8, 2018

अब सियासतदानो को नही सियासत करनी चाहिए-----@ Deepak Sharma

अब सियासतदानो को नही  सियासत रनी चाहिए
बस जिस्मख़ोरी सज़ा तो फ़क़त फाँसी होनी चाहिये।
 
इंसान जब बनके दरिंदा हदें  हैवानियत  की तोड़ दे  
गर्दने पागल वहशियों की चोराहों पे  कटनी  चाहिये। 

हादसे कुछ दिन की ख़बरें बनकर रह जाते सुर्खियां     
अहले-वतन  अंजाम तक  पूरी मुहीम  होनी चाहिये।     
    
ज़िन्दगी और मौत के बीच लाके हवस ने छोड़ दिया
कोई रौशनी बुझने से पहले  कालिख़  मिटनी चहिये।        

हाथों में शमा जलाने से  इन्साफ कभी मिलता नही 
हवशियों  की  बोटियाँ  काट काट फेकनी  चाहिये। . 

"दीपक"  सख़्त   क़ानून  क्योँ हुकूमत  बनाती  नही
नस्ल को जिस्मखोरों की सख्त सीख मिलनी चाहिए। 

इस तरह हुँकार दो कि आसमां भी काँप जाए @ @ कवि दीपक शर्मा

"इस तरह हुँकार दो कि आसमां भी काँप जाए
आवाम  की आवाज़ सुन निजाम सारा  थरथराये 
 हौसलों  की आग़ से पिघला दो तख़्त -ताज को  
ज़म्हूरियत के मायने  नहीं लूट ले कोई लाज को
आज किसी भी हाल में नतीज़ा निकलना चाहिए
मुजरिमों के जिस्म को फंदे से लटकना चाहिए .
 
इन्साफ की पुकार को इतना न लम्बा खीचिये
कानून की दुहाई मुंसिफ हर  जुर्म में न दीजिये
कुछ फैसले आज हुकुम सख्त-ओ-सख्त लीजिये 
समाज में इंसाफ की  तो एक पेश नज़ीर कीजिये  
खून है जो रग में तो फिर खून उबलना चाहिए
आज किसी भी हाल में नतीज़ा निकलना चाहिए .
 
आवाम जब चिल्लाती है सरकारें पलट जाती हैं
सीमाएं सारी खौफ़ से दायरे में सिमट जाती हैं
हवाओं की ख़ामोशी का निजाम न इम्तिहान ले
खामोशियाँ नाराज़ हो तूफ़ान में बदल जाती हैं
सरकार का फ़रियाद से अब सीना दहलना चाहिए 
आज किसी भी हाल में नतीज़ा निकलना चाहिए .
 
देखना फिर आकर कोई बातों में उलझाने न पाए 
झूठे कोरे वायदे ले कोई बिचोलिया  मनवाने न आये 
अपना ही कोई आदमी  देखो आग़  सुलगाने न पाए
अंजाम तक आने से पहले ये हौसला जाने न पाए
मौत के कदमों में मुजरिम सिर पटकना चाहिए
आज किसी भी हाल में नतीज़ा निकलना चाहिए .
 
@ कवि  दीपक शर्मा