लो राज़ की बात एक बताते हैं
हम हँसकर अपने ग़म छुपाते हैं।
आदतन महफ़िल मे बस मुस्कुराते हैं।
सिर हम बस उसके दर पर झुकाते हैं
माँ मुझे फिर तेरे आँचल मे सोना है
आजा हसरत से बहुत देख बुलाते हैं
चिराग हम तेज़ हवायों मे ही जलाते है
पर प्यार से गैर भी गले हमे लगाते हैं
निगाह मिलाते हैं हम नज़र नहीं मिलाते हैं
हैं ऊपर वाले की इनायत मुझ पे "दीपक "
वो मिट जाते जो मुझ पर नज़र उठाते हैं
सर्वाधिकार सुरक्षित @ कवि दीपक शर्मा
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